Q1: निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए /
(a)भारतीय परिषद् अधिनियम, 1892
भारतीय परिषद् अधिनियम, 1892: एक ऐतिहासिक विश्लेषण
भारतीय परिषद् अधिनियम, 1892, ब्रिटिश भारत में एक महत्वपूर्ण कानूनी मील का पत्थर था। यह अधिनियम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और अन्य राष्ट्रवादी संगठनों के बढ़ते दबाव के जवाब में पारित किया गया था। इस अधिनियम ने भारतीयों के लिए विधायी परिषदों में भागीदारी के अवसरों को विस्तारित किया, जो ब्रिटिश शासन के तहत एक महत्वपूर्ण सुधार माना गया।
पृष्ठभूमि
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 1885 में हुई थी, और उसने शुरू से ही भारतीयों के लिए विधायी परिषदों में अधिक प्रतिनिधित्व की मांग की। 1880 के दशक के उत्तरार्ध में, भारतीय राष्ट्रवादियों ने ब्रिटिश सरकार से कई सुधारों की मांग की, जिनमें से प्रमुख मांगें निम्नलिखित थीं:
- विधायी परिषदों का विस्तार: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने विधायी परिषदों के विस्तार और उनमें भारतीयों की संख्या बढ़ाने की मांग की।
- आर्थिक सुधार: भारतीयों ने भूमि राजस्व, कर नीति और वित्तीय मामलों में सुधार की मांग की।
- स्वायत्तता: उन्होंने स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं को अधिक शक्तियां देने की मांग की।
इन मांगों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश सरकार ने भारतीय परिषद अधिनियम, 1892 को पारित किया।
भारतीय परिषद अधिनियम, 1892 के प्रमुख प्रावधान
भारतीय परिषद अधिनियम, 1892 ने कई महत्वपूर्ण बदलाव किए जो भारतीय विधायी परिषदों के कार्यप्रणाली और संरचना को प्रभावित करते थे। इसके प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित थे:
- विधायी परिषदों का विस्तार: इस अधिनियम ने केंद्र और प्रांतीय विधायी परिषदों के सदस्यों की संख्या में वृद्धि की। उदाहरण के लिए, वायसराय की परिषद में गैर-सरकारी सदस्यों की संख्या बढ़ाकर 10-16 कर दी गई।
- प्रतिनिधित्व का सुधार: इस अधिनियम ने भारतीयों को अधिक प्रतिनिधित्व देने का प्रावधान किया। हालाँकि, भारतीय सदस्य अभी भी ब्रिटिश सरकार द्वारा नियुक्त किए जाते थे और निर्वाचित नहीं होते थे, फिर भी उनके चयन में स्थानीय निकायों और संगठनों की भूमिका बढ़ाई गई।
- प्रशासनिक सुधार: अधिनियम ने परिषदों को बजट पर चर्चा करने और प्रश्न पूछने की अनुमति दी। विधायी परिषदों में सदस्यों को बजट के विभिन्न मदों पर सवाल पूछने का अधिकार मिला, जिससे प्रशासनिक पारदर्शिता बढ़ी।
- प्रस्तावित विषयों पर चर्चा: सदस्यों को विभिन्न प्रशासनिक मुद्दों पर चर्चा करने और सुझाव देने का अधिकार मिला। इससे विधायी प्रक्रियाओं में भारतीयों की भागीदारी बढ़ी और उन्हें अपने विचार व्यक्त करने का मंच मिला।
भारतीय परिषद अधिनियम, 1892 का प्रभाव
भारतीय परिषद अधिनियम, 1892 का भारतीय राजनीति और समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा। इस अधिनियम ने कई महत्वपूर्ण परिणाम उत्पन्न किए:
- भारतीय राजनीतिक जागरूकता में वृद्धि: इस अधिनियम ने भारतीयों को विधायी प्रक्रियाओं में भाग लेने का अवसर प्रदान किया, जिससे भारतीय राजनीतिक जागरूकता में वृद्धि हुई। भारतीय नेताओं ने विधायी परिषदों में सक्रिय भागीदारी की और अपने मुद्दों को प्रभावी ढंग से उठाया।
- राष्ट्रवादी आंदोलन को बल: इस अधिनियम ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और अन्य राष्ट्रवादी संगठनों को मजबूत किया। उन्होंने विधायी परिषदों का उपयोग अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए किया और ब्रिटिश सरकार पर दबाव बनाने का प्रयास किया।
- प्रशासनिक पारदर्शिता: विधायी परिषदों में भारतीय सदस्यों को प्रश्न पूछने और बजट पर चर्चा करने का अधिकार मिलने से प्रशासनिक पारदर्शिता बढ़ी। भारतीय सदस्यों ने सरकारी नीतियों और कार्यों की जांच की और उनकी आलोचना की।
- स्थानीय स्वायत्तता का विकास: इस अधिनियम ने स्थानीय निकायों और संगठनों को विधायी परिषदों में सदस्य मनोनीत करने की भूमिका सौंपी, जिससे स्थानीय स्वायत्तता को बढ़ावा मिला। इससे स्थानीय मुद्दों पर अधिक ध्यान दिया गया और जनता की आवाज़ को सुना गया।
सीमाएं और आलोचना
हालांकि भारतीय परिषद अधिनियम, 1892 ने महत्वपूर्ण सुधार किए, लेकिन इसके कई सीमाएँ भी थीं:
- पूर्ण प्रतिनिधित्व की कमी: भारतीय सदस्य अभी भी निर्वाचित नहीं होते थे और उन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता था। इससे भारतीयों की वास्तविक शक्ति और प्रतिनिधित्व सीमित रहा।
- सीमित अधिकार: विधायी परिषदों के सदस्यों को केवल सवाल पूछने और सुझाव देने का अधिकार था, लेकिन वे निर्णायक शक्तियों से वंचित थे। उन्हें बजट को संशोधित करने या नीतियों को लागू करने का अधिकार नहीं था।
- ब्रिटिश सरकार का नियंत्रण: विधायी परिषदों पर ब्रिटिश सरकार का नियंत्रण बना रहा। भारतीय सदस्य ब्रिटिश अधिकारियों के समक्ष अपनी बातें रख सकते थे, लेकिन अंतिम निर्णय ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा ही लिया जाता था।
निष्कर्ष
भारतीय परिषद अधिनियम, 1892, भारतीय राजनीतिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण कदम था। इसने भारतीयों को विधायी प्रक्रियाओं में भागीदारी का अवसर दिया और उनके राजनीतिक जागरूकता को बढ़ावा दिया। हालाँकि, इसकी सीमाएँ भी थीं और यह पूर्ण स्वायत्तता और वास्तविक प्रतिनिधित्व प्रदान नहीं कर सका। इसके बावजूद, इस अधिनियम ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को मजबूत किया और भविष्य के सुधारों के लिए मार्ग प्रशस्त किया। भारतीय परिषद अधिनियम, 1892 का महत्व इस बात में निहित है कि इसने भारतीयों के राजनीतिक अधिकारों और प्रशासनिक पारदर्शिता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया, जो आगे चलकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का आधार बना।