Q4:- निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
(a)लैंगिक रूढ़िबद्ध धारणाओं से मुकाबला करने के लिए भारतीय सर्वोच्च न्यायालय की चिन्ता का उल्लेख कीजिए।
भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने लैंगिक रूढ़िबद्ध धारणाओं से मुकाबला करने के लिए समय-समय पर अनेक महत्वपूर्ण फैसले दिए हैं और समाज को एक समतामूलक दिशा में आगे बढ़ाने के लिए प्रयास किए हैं। ये फैसले न केवल कानून के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि समाज में व्याप्त गहरी जड़ वाली लैंगिक असमानताओं और रूढ़ियों को चुनौती देने का कार्य भी करते हैं। इस व्यापक लेख में, हम सर्वोच्च न्यायालय के विभिन्न फैसलों और उनके प्रभावों की विस्तृत चर्चा करेंगे।
1. महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा
विशाखा गाइडलाइंस (1997)
यह मामला कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से संबंधित था। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश जारी किए, जिन्हें ‘विशाखा गाइडलाइंस’ के नाम से जाना जाता है। इन गाइडलाइंस ने कार्यस्थलों पर महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक ढांचा प्रदान किया। इस निर्णय ने न केवल महिलाओं को कार्यस्थल पर सुरक्षित माहौल प्रदान किया बल्कि समाज में महिलाओं के प्रति दृष्टिकोण में भी बदलाव लाने की कोशिश की।
मातृत्व अवकाश
सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न मामलों में मातृत्व अवकाश के अधिकार को मान्यता दी है। यह न केवल महिलाओं के स्वास्थ्य और कल्याण के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह इस बात की भी पहचान करता है कि मातृत्व कोई बाधा नहीं होनी चाहिए और इसे करियर में प्रगति के रास्ते में रुकावट के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।
2. घरेलू हिंसा और सुरक्षा
घरेलू हिंसा अधिनियम (2005)
सुप्रीम कोर्ट ने घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के तहत महिलाओं की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण फैसले दिए हैं। इस अधिनियम ने घरेलू हिंसा की व्यापक परिभाषा दी और महिलाओं को कानूनी सहायता, सुरक्षा आदेश और निवास अधिकार प्रदान किए। कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया कि घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं को त्वरित और प्रभावी न्याय मिले।
3. एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के अधिकार
धारा 377 का निरस्तीकरण (2018)
सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को असंवैधानिक घोषित कर दिया, जो समलैंगिक संबंधों को अपराध मानती थी। यह निर्णय भारतीय समाज में लैंगिक पहचान और यौनिकता के प्रति दृष्टिकोण में एक महत्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक है। इस फैसले ने एलजीबीटीक्यू+ समुदाय को कानूनी मान्यता और समानता का अधिकार प्रदान किया।
4. ट्रांसजेंडर अधिकार
राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ (2014)
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को तीसरे लिंग के रूप में मान्यता दी। कोर्ट ने कहा कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को समान अधिकार, सुरक्षा और अवसर दिए जाने चाहिए। इस फैसले ने ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकारों की सुरक्षा और मान्यता में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
5. महिला आरक्षण और प्रतिनिधित्व
पंचायतों में महिला आरक्षण
सुप्रीम कोर्ट ने पंचायतों में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण की संवैधानिकता को बनाए रखा है। यह निर्णय महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी और नेतृत्व में सुधार लाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।
6. बाल विवाह और लैंगिक असमानता
बाल विवाह निषेध अधिनियम
सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह निषेध अधिनियम को सख्ती से लागू करने के लिए कई दिशा-निर्देश दिए हैं। इस कानून का उद्देश्य लड़कियों को शिक्षा और समुचित विकास के अवसर प्रदान करना है, जो कि लैंगिक रूढ़ियों के खिलाफ एक महत्वपूर्ण कदम है।
7. कार्यस्थल पर लैंगिक भेदभाव
समान वेतन और अवसर
सुप्रीम कोर्ट ने समान कार्य के लिए समान वेतन के सिद्धांत को लागू करने के लिए कई महत्वपूर्ण फैसले दिए हैं। यह निर्णय कार्यस्थलों पर लैंगिक भेदभाव को समाप्त करने और महिलाओं को समान अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से लिया गया है।
8. फिल्म और मीडिया में लैंगिक प्रतिनिधित्व
फिल्म सेंसरशिप
सुप्रीम कोर्ट ने फिल्म सेंसरशिप से संबंधित मामलों में यह सुनिश्चित किया है कि फिल्मों में महिलाओं और अन्य लैंगिक अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व संवेदनशील और सम्मानजनक हो। यह समाज में लैंगिक रूढ़ियों को चुनौती देने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है।
9. लैंगिक संवेदनशीलता का संवर्धन
न्यायिक प्रशिक्षण
सुप्रीम कोर्ट ने न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों के लिए लैंगिक संवेदनशीलता प्रशिक्षण कार्यक्रमों की सिफारिश की है। इसका उद्देश्य न्यायिक प्रणाली में लैंगिक रूढ़ियों को समाप्त करना और न्यायाधीशों को लैंगिक संवेदनशीलता के मुद्दों पर जागरूक बनाना है।
निष्कर्ष
भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने लैंगिक रूढ़िबद्ध धारणाओं से मुकाबला करने के लिए अनेक महत्वपूर्ण फैसले दिए हैं। इन फैसलों ने न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, बल्कि समाज में लैंगिक समानता और न्याय के प्रति एक नई दिशा भी प्रदान की है। न्यायालय के ये फैसले समाज में गहरे बदलाव लाने की क्षमता रखते हैं और एक समान, न्यायसंगत और समावेशी समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान करते हैं।
इन प्रयासों के बावजूद, लैंगिक समानता की दिशा में अभी भी लंबा रास्ता तय करना बाकी है। सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर बदलाव लाने के लिए लगातार प्रयासों की आवश्यकता है। न्यायालय के फैसलों को जमीनी स्तर पर लागू करने और उन्हें सामाजिक मान्यता दिलाने के लिए सरकार, समाज और विभिन्न संगठनों को मिलकर काम करना होगा। केवल तभी हम एक ऐसे समाज की कल्पना कर सकते हैं जहां हर व्यक्ति, चाहे वह किसी भी लिंग का हो, समान अधिकार और अवसरों का आनंद ले सके।