Q3:-भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस आंदोलन के उदारवादी चरण के योगदान का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) की स्थापना 1885 में हुई थी और इसके शुरुआती चरण को उदारवादी चरण (1885-1905) के रूप में जाना जाता है। इस चरण में कांग्रेस का नेतृत्व मुख्यतः मध्यम वर्ग के शिक्षित भारतीयों के हाथ में था, जो ब्रिटिश शासन के भीतर संवैधानिक सुधारों और अधिक प्रतिनिधित्व की मांग कर रहे थे। इस लेख में हम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस आंदोलन के उदारवादी चरण के योगदान का आलोचनात्मक परीक्षण करेंगे और इसके प्रभावों को विश्लेषित करेंगे।
उदारवादी चरण का पृष्ठभूमि
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना ए.ओ. ह्यूम, एक सेवानिवृत्त ब्रिटिश अधिकारी, द्वारा की गई थी। कांग्रेस का मुख्य उद्देश्य भारतीय जनता के हितों की रक्षा करना और ब्रिटिश सरकार से संवैधानिक सुधारों की मांग करना था। शुरुआती चरण में कांग्रेस के नेता जैसे कि दादाभाई नौरोजी, गोपाल कृष्ण गोखले, फिरोजशाह मेहता, सुरेंद्रनाथ बनर्जी और बदरुद्दीन तैयबजी ने उदारवादी दृष्टिकोण अपनाया।
उदारवादी चरण का योगदान
संवैधानिक सुधार और प्रतिनिधित्व
उदारवादियों ने संवैधानिक सुधारों की मांग की और भारतीयों के लिए विधायी परिषदों में अधिक प्रतिनिधित्व की वकालत की। उन्होंने भारतीयों के लिए अधिक सरकारी नौकरियों और प्रशासनिक पदों की मांग की।
ब्रिटिश सरकार के प्रति वफादारी
उदारवादी नेताओं ने ब्रिटिश सरकार के प्रति वफादारी बनाए रखी और उम्मीद की कि संवैधानिक सुधारों के माध्यम से भारतीय जनता के अधिकारों को सुरक्षित किया जा सकेगा। उन्होंने विभिन्न आयोगों और समितियों के माध्यम से अपनी मांगे प्रस्तुत कीं और उम्मीद की कि सरकार उनकी मांगों को मान लेगी।
समाज सुधार
उदारवादी नेताओं ने समाज सुधार के लिए भी काम किया। वे सती प्रथा, बाल विवाह और जाति प्रथा के खिलाफ थे। उन्होंने शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के सुधार के लिए भी कार्य किया।
प्रेस और भाषण की स्वतंत्रता
उदारवादियों ने प्रेस और भाषण की स्वतंत्रता के लिए भी आवाज उठाई। उन्होंने समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के माध्यम से अपने विचारों को जनता तक पहुँचाया और ब्रिटिश सरकार की आलोचना की।
आलोचनात्मक परीक्षण
सीमित उपलब्धियाँ
उदारवादी नेताओं की सीमित उपलब्धियाँ थीं। उन्होंने मुख्यतः ब्रिटिश सरकार से याचिकाएँ और अनुरोध किए, लेकिन उनके प्रयासों का बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ा। सरकार ने उनकी अधिकतर मांगों को नजरअंदाज कर दिया या मामूली सुधार किए।
जनसमर्थन की कमी
उदारवादियों के आंदोलन को व्यापक जनसमर्थन नहीं मिला। उनकी कार्यशैली और मांगें मुख्यतः शिक्षित मध्यम वर्ग तक सीमित रहीं और ग्रामीण जनता को वे प्रभावित नहीं कर पाए।
ब्रिटिश सरकार के प्रति अधिक विश्वास
उदारवादी नेता ब्रिटिश सरकार के प्रति अधिक विश्वास रखते थे और उम्मीद करते थे कि सरकार उनकी मांगों को स्वेच्छा से मान लेगी। उनका यह दृष्टिकोण उन्हें एक प्रभावी जनांदोलन का नेतृत्व करने में असफल रहा।
क्रांतिकारी दृष्टिकोण की कमी
उदारवादी नेताओं का दृष्टिकोण क्रांतिकारी नहीं था। उन्होंने केवल संवैधानिक सुधारों की मांग की और ब्रिटिश शासन के खिलाफ किसी बड़े आंदोलन या विद्रोह की योजना नहीं बनाई।
उदारवादी चरण का प्रभाव
राजनीतिक चेतना
उदारवादी नेताओं ने भारतीय जनता में राजनीतिक चेतना को बढ़ावा दिया। उन्होंने भारतीयों को उनके अधिकारों और सरकार की नीतियों के बारे में जागरूक किया।
राष्ट्रीय एकता
उदारवादी नेताओं ने विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों के लोगों को एकजुट किया और राष्ट्रीय एकता को मजबूत किया। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को एक मंच प्रदान किया, जहाँ से भारतीय जनता की समस्याओं और मांगों को उठाया जा सकता था।
राजनीतिक प्रशिक्षण
उदारवादी चरण ने भारतीय नेताओं को राजनीतिक प्रशिक्षण प्रदान किया। यह नेतृत्व की एक नई पीढ़ी तैयार करने में सहायक रहा, जिसने आगे चलकर स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी।
आधारभूत संरचना
उदारवादी चरण ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की आधारभूत संरचना को मजबूत किया। उन्होंने कांग्रेस को एक संगठनात्मक रूप दिया और इसे भारतीय राजनीति का एक महत्वपूर्ण अंग बनाया।
भविष्य की रणनीतियों का आधार
उदारवादी चरण ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के भविष्य की रणनीतियों के लिए एक आधार तैयार किया। उन्होंने अहिंसात्मक आंदोलन, संवैधानिक मांगें और जनता के बीच राजनीतिक चेतना जैसे तत्वों को आगे बढ़ाया, जो आगे चलकर गांधीजी के नेतृत्व में स्वतंत्रता संग्राम का महत्वपूर्ण हिस्सा बने।
ब्रिटिश शासन के विरोध का आरंभ
उदारवादी नेताओं ने ब्रिटिश शासन के विरोध का आरंभ किया। उनकी मांगें और याचिकाएँ सरकार को भारतीय जनता की समस्याओं की ओर ध्यान देने पर मजबूर करने का पहला कदम थीं।
निष्कर्ष
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उदारवादी चरण ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हालांकि उनकी उपलब्धियाँ सीमित थीं और जनसमर्थन की कमी थी, लेकिन उन्होंने भारतीय जनता में राजनीतिक चेतना को बढ़ावा दिया और राष्ट्रीय एकता को मजबूत किया। उदारवादी नेताओं ने भारतीय नेताओं को राजनीतिक प्रशिक्षण प्रदान किया और कांग्रेस को एक संगठनात्मक रूप दिया। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के भविष्य की रणनीतियों के लिए एक आधार तैयार किया और ब्रिटिश शासन के विरोध का आरंभ किया।
उदारवादी चरण ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए एक महत्वपूर्ण नींव रखी, जिस पर बाद के क्रांतिकारी और जनांदोलनों का निर्माण हुआ। इस प्रकार, उदारवादी नेताओं के योगदान का मूल्यांकन करते समय हमें उनके सीमित उपलब्धियों के बावजूद उनके महत्वपूर्ण प्रभाव को स्वीकार करना चाहिए।